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अकबर बीरबल के किस्से - भाग 46

मुल्ला नसीरुद्दीन और पडोसी


एक पडोसी मुल्ला नसीरुद्दीन के घर आ पहुंचा मुल्ला उस से मिलने बाहर निकला तो पडोसी ने मुल्ला से निवेदन किया कि मुल्ला क्या तुम आज आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो ?

मुल्ला ने उस से प्रयोजन पूछा तो पडोसी ने जवाब दिया कि मुझे तुम्हारे गधे की इसलिए आवश्यकता है क्योंकि मुझे इस शहर से दूसरे शहर तक कुछ सामान को पहुचाना है इसलिए इतना तो करो कृपया । मुल्ला को अपना गधा बेहद प्रिय था इसलिए वो किसी को भी अपना गधा नहीं देना चाहता था लेकिन समस्या ये थी मुल्ला अपने पडोसी को भी नाराज नहीं कर सकता था इसलिए उसने सफेद झूट बोला ही उचित समझा और उस व्यक्ति से कहा कि ” भाई माफ़ करना मैं दे देता लेकिन आज ही सुबह किसी को मेने अपना गधा दे दिया है ।”

मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी अंदर से गधे के रेंकने की आवाज आने लगी और उसका गधा ढेंचू ढेंचू करने लगा । इस पर पडोसी ने चौंकते हुए कहा ” मुल्ला लेकिन गधा तो अंदर बंधा हुआ है उसकी आवाज आ रही है और तुम झूट कह रहे हो ।”

मुल्ला ने अपने बचाव के लिए बिना घबराए हुए जवाब दिया ” तुम किसी पर यकीन करते हो ? गधे पर या मुल्ला पर ।” पडोसी बिना कुछ बोले वंहा से चला गया ।

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